चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है…” तन्हाई में बैठकर दर्द को अपनी क़लम से लिखता हूँ, वक्त के बदल जाने से इतनी तकलीफ नही होती है, आह-ओ-ज़ारी ज़िंदगी है बे-क़रारी ज़िंदगी हजारों लोग हैं मगर कोई उस जैसा नहीं है। “तन्हाई में किसी न किसी की याद होती https://youtu.be/Lug0ffByUck